मोहाली का माल और जयपुर का नशा, ये दोनों एक दूसरे से बिल्कुल अलग नहीं थे। एक शहर जो हमेशा रात की चादर में लिपटा रहता था, जहां छत से हवा फैलती थी, वो एक अजीब सा जादू बनता था। मोहाली की गलियों में घूमते हुए, एक छोटे से दुकान पर मिलता था वो माल, जो सिर्फ उनके लोगों के लिए ही खास था। उसकी खुशबू ने सारी गलियों को अपने महकावत में भींच दिया था।
और फिर आता था जयपुर, शहर जो अपने रंग और मोहब्बत से जाना जाता था। वहां के बाज़ारों में घूमते हुए, दिल को खुश करने वाले नशा को ढूंढते रहना एक अनोखा अनुभव था। हर गली, हर मोहल्ले में बसी थी वो कुछ खास बात, जो सिर्फ जयपुर में ही मिलता था।
लेकिन किस्मत ने दोनों के रास्तों में मिलाया। एक दिन, एक मोहाली का लड़का, मोहन, अपने दोस्तों के साथ जयपुर की सैर करने निकला। जयपुर के रंगों में खो कर, वो अपने आप को भूल गया। वो गलियाँ, वो बाज़ारें, और वो लोग – सब कुछ नए से लग रहा था।
उस यात्रा में, मोहन एक नये दोस्त से मिला, रणजीत नाम था उसका। रणजीत जयपुर का ही लड़का था, लेकिन उसकी आँखों में मोहाली का एहसास था। दोनो के बीच में दोस्ती का रिश्ता जल्दी ही बन गया।
एक शाम, रणजीत ने मोहन को अपना घर बुलाया। घर में, रणजीत ने मोहन को अपने दोस्त तेजा से मिलवाया। माँ, एक सीधा -सादा और शांत स्वभाव का आदमी था, लेकिन उसकी आँखों में एक गहरा सा राज छुपा हुआ था।
मोहन ने नोटिस किया कि रणजीत के दोस्त के हाथ में एक छोटा सा काले रंग का डिब्बा था। उसमें वो माल था, जो मोहन के शहर की खास पहचान थी। मोहन का दिल छुपी हुई कहानी को समझ आ गया।
दिन बीतने के साथ, मोहन और रणजीत की दोस्ती और गहरी हो गई। दोनो ने एक दूसरे को अपनी जिंदगी के राज़ बताए, और अपने-अपने शहरों के माल और नशा को शेयर किया।
क्या आप सोच सकते हो उनके शहरों के माल में क्या था?
मोहाली का माल और जयपुर का नशा, ये दोनो अब एक नये रिश्ते में बंधे हुए थे। उनकी कहानी ने दिखाया कि चाहे शहर हो या गाँव, इंसानियत के नाते माल में कोई फ़र्क नहीं होता। और जब दोस्ती और प्यार हो, तो माल कही का भी हो बस दोस्त को पिला देना!